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तूतियों का सामूहिक स्वर

मेरा पक्ष...
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कल #26जनवरी है. गणतंत्र दिवस.
और कथित झांकियों के निकलने से 24 घण्टे पूर्व मैं कुछ विडम्बनाएं रेखांकित कर रहा हूँ.
बेशक यह अपराध है. कि ‘शान’ के गान के समय में अपमान के स्वर ? गब्बर से शब्द उधार लूँ…बहुत ना-इंसाफ़ी है रे…
मेरा मानना है…
तूतियों का सामूहिक स्वर
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कुछ अच्छी कविताओं के पास अब भी सुरक्षित हैं –
रचनात्मक विरोध के स्वर
Rohith Chakravarti #Vemula के सुसाइड नोट्स…
#Hardik Patel की शिकायतें…
#Kanhaiya Kumar की आज़ादी वाली मांगें…
#नोटबंदी की आधी-अधूरी तैयारियां…
बैंक अधिकारियों की मिलीभगत…
#जियो सिम का बाज़ारवाद…
सर्जिकल स्ट्राइक की मार्केटिंग…
हवाला मार्केट का कुत्तापना…
#Aleppo Boy वाली Syrian war की हक़ीक़तें…
.
.
…और अभी-अभी #ट्रंप से जुड़ी कुछ ज़रूरी बेचैनियां भी !
यूँ तो ‘नक्कारखाने’
‘तूतियों’ को तवज्जो नहीं देते
फिर भी एक संप्रभु राष्ट्र तूतियों को
दरकिनार नहीं कर सकता…!
तूतियों का सामूहिक स्वर
सत्ताओं की चूलें हिला देता है…
देखें कब तक हम
जल्लीकट्टू की बेवकूफियों में
हिलगे रहेंगे ?
और बताते रहेंगे
‘पेटा’ को राष्ट्रद्रोही !!
आमीन !!!
——————————–
साथ में कुछ ऐसा भी…
?
===============
इतने ‘रत्न’ !
इतने ‘विभूषण’ !!
इतने ‘भूषण’ !!!
इतने ‘पद्म’ सम्मान !!!!
फिर भी …
ख़तरे में इज़्ज़त,
क्षत-विक्षत ‘मान’ …
सचमुच
भारत देश महान !
***
क़ैद …बा-मशक्कत !
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…हमें नंगा कर
वे कह रहे हैं…
‘झण्डा’ फ़हराइये !

आप ही बताएं !
हम हाथों से
‘लाज’ ढंकें…
या
झण्डा फ़हरायें
…और हाँ !
झण्डे से ‘लाज’ ढंकने पर
हमें हो सकती है…
क़ैद …बा-मशक्कत !
***
बातों में आकर
=====================
“…उन्होंने हमसे कहा
कहो…
वंदे…मातरम !
भारतमाता की जय !
सुजलाम,सुफलाम जैसा कुछ …
और…
सचमुच हम उनकी बातों में आकर
भटकने लगे
राष्ट्रीय गीतों
की भूल-भुलैया में…

उधर
वे एक-एक कर
क़ैद करते रहे
राष्ट्रीय ‘संवेदना’ के चिन्हों को
देशी-विदेशी ‘तिज़ोरियों’ में !
***
…मैं ख़ुश था…लेकिन ?
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मैं ख़ुश था…
कि चलो,
पुरुषों के लिए आरक्षित पद पर
देर से ही सही…
आरूढ़ हुई स्त्री !
मैं ख़ुश था…
कि चलो,
पद से जुड़े मामले…और उनके परिणाम
अब ज़्यादा संवेदनशील होंगे !
आख़िर मामला
अब तो…
“स्त्री” के नेतृत्व का था न !
अरे !
यह क्या ?
यह किसकी आवाज़ है ?
ये कौन बोल रहा है…
स्त्री के वेश में,
पुरुष-सा !!
***

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