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शायद ‘ताज’ – नीति है ?

मेरा पक्ष...
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क्या यह राजनीति है ?
शायद ‘ताज’ – नीति है ?
ओह…
एक लाख पचास हज़ार पन्नों के दस्तावेज़ !
बक्से 6 !!
सुना है चुनाव आयोग को सौंपे इन ‘स्वामी भक्त’ हस्ताक्षरों में 90% कारिंदों ने ‘अखिलेश’ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की है !!!
वाह रे पुत्तर !!!!
बेचारे पापा जी…!!!!!
लेकिन मेरा विश्वास है कि ज्ञानी चुनाव आयोग शेष 10% हस्ताक्षरों के आधार पर अपना फ़ैसला ‘शाहजहां’ के पक्ष में करेगा !!!!!!
सुना तो यह भी है कि ‘शाहजहां’ ताजमहल पर अपना ख़ज़ाना लुटा रहे थे…
और बेटा महान अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर.( Aurangzeb) यह अन्याय बर्दाश्त न कर सका ! ‘भारी’ मन से उसने ‘पापा’ को क़ैद में मर जाने के लिए फ़ेंक दिया !
‘नेताजी’ कौन सी राजनीतिक पूँजी गंवा रहे थे ?
इतिहास अपने को दोहराता है.
लेकिन आधुनिक सभ्यता / विवेक उसमें आवश्यक संशोधन कर ‘समय’ को कलंकित होने से बचा लेती है…!
बाप-बेटे की कथित ‘रार’ का ‘राष्ट्रीय विमर्श’ बन जाना हमारे समय की सर्वाधिक भ्रष्ट नैतिकता का उदाहरण है.
– #Ishuईशू
मुझे दो शेर याद आ रहे हैं…

एक नेताजी की मुलायम छवि के लिए…

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है,
कई झूठे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है !

*******
दूसरा ‘पिता’ की विरासत पर ‘अंगेज़ी’ पढ़ने वाले अखिलेश गुट के लिए…

आपके दोस्तों में कोई दुश्मन हो भी सकता है,
ये अँग्रेज़ी दवाएँ है, रिएक्शन हो भी सकता है !

दिल से –
आमीन !!!

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