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नोटबंदी उर्फ़ टीआरपी राजनीति

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नोटबंदी उर्फ़ टीआरपी राजनीति
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विपक्ष नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार पर चौतरफ़ा हमलावर है और रहना भी चाहिए.ये हमले स्वस्थ और सुरक्षित लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी हैं.
चूँकि मोदी सरकार को सामान्यतयः ‘मोदी’ का ही पर्याय माना जाता है.जाहिर है विपक्ष द्वारा ‘मोदी सरकार’ को घेरने की रणनीति अप्रत्यक्षतयः ‘मोदी’ पर ही किया गया हमला माना जाता है.अब इसे आप चाहें मोदी जी का ‘आभा’ मंडल कहें या फिर ‘गेंद’ को हमेशा अपनी ‘स्टिक’ के इर्द-गिर्द रखने की उनकी प्रभावी चपलता माने.
शायद मोदी जी को भी राजनीति को इस ‘अपनी’ तरह से खेलने में मज़ा आने लगा है.
ताज़ा हमला राहुल सर की तरफ़ से है. उन्होंने नोटबंदी को टीआरपी राजनीति का नतीजा मानते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी अपनी ही छवि के गुलाम बन कर रह गए हैं.
राहुल सर के पिछले राजनीतिक करियर और बयानों को मद्देनज़र रखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि राजनीति को ‘टीआरपी राजनीति’ से जुड़ा मुहावरा बताना उनका मौलिक नहीं हो सकता. और इस सुन्दर मुहावरे को जो किसी के द्वारा भी ( शायद पीके द्वारा ) गढ़ा गया हो सकता है प्रस्तुत करने के लिए राहुल सर बधाई के पात्र हैं. बात अच्छी हो तो तारीफ़ बनती ही है.
क्या वाक़ई मोदी जी अपनी ‘छवि’ में क़ैद हो कर रह गए हैं ?
बहुत पहले हमने अपने लेख ‘भाषण की राजनीति’ के अंतर्गत लिखा था कि यदि आपको अपने ऊपर पूरा विश्वास हो और आपने अपने ‘एक्शन’ पर पूरा होमवर्क किया हो तो आपको अपने कहे,किए कभी शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ेगी.मेरा विश्वास है और मेरे पास पर्याप्त तर्क हैं यह कहने के लिए कि राहुल सर ने मोदी जी पर जो ‘छवि की ग़ुलामी’ का नया आरोप मढ़ा है…वह निराधार है.
नोबेल विजेता पॉल क्रूगमैन जो न्यूयॉर्क की सिटी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं ने भी नोटबंदी को लेकर ‘हड़बड़ी’ शब्द का स्तेमाल किया है लेकिन वह भी मानते हैं कि नोटबंदी की भारत में पर्याप्त वजह थी. ‘हड़बड़ी’ और ‘संदेह’ के संदर्भ में उनका कहना था कि परिणाम कुछ भी हो सकते हैं लेकिन यदि सब कुछ शुभ होता है तो उन्हें भी ख़ुशी होगी. राहुल जी को उपरोक्त बात को ध्यान में रखते हुए काँग्रेस को ‘चिदम्बरी’ सोच से मुक्त करने के प्लान ‘टू’ पर भी काम करना शुरू कर देना चाहिए.
गांधी जी ‘सत्य’ के साथ प्रयोग करते थे.वे ‘अंतिम सत्य’ जैसे किसी भी ‘सत्य’ को नहीं मानते थे. जाहिर है ऐसी सोच रखने वाला व्यक्तित्व क्यूँ कर अपनी छवि बनाएगा ? छवि के ग़ुलाम जैसे आरोपों का तो ऐसे व्यक्तित्व से दूर- दूर तक का कोई वास्ता नहीं
मोदी जी के संदर्भ में भी मैं ऐसा ही कुछ सोचता हूँ.
मुझे अच्छी तरह से याद है…
मोदी जी विदेश में कंपनी प्रमुखों के सम्मुख थे. वे बच्चों जैसी जिज्ञासा के साथ कुछ ‘उत्पादों’ के यूज़…इफेक्ट पर चर्चा कर रहे थे.
यह सब कुछ प्रधानमंत्री की बनायी गयी छवि से बिल्कुल उलट था. वे वहाँ जिज्ञासू थे. वे अच्छे और मानवता की दृष्टि से सच्चे लगने वाले उन उत्पादों को ‘मेक इन इंडिया’ के अन्तर्गत भारतीयों को तोहफ़े के रूप में देने को उत्सुक थे.
नोटबंदी को लेकर भी मोदी जी ने ‘टास्क’ गठित कर पूरी योजना बनाकर काम किया है.परेशानियाँ होंगी इसका उन्हें अंदाज़ा था. और सबसे बड़ी बात यह है कि नोटबंदी को वे कालेधन की निकासी के मामले में किया गया पहला अटैक मानते हैं. ख़ातिर जमा रखिए उनका यह ‘अश्वमेघ यज्ञ’ ‘सोने’ से होता हुआ ‘रियल एस्टेट’ तक जाएगा.
…तो राहुल सर विश्वास मानिए देश अगले सर्जिकल स्ट्राइक के लिए तैयार है.मोदी जी “बैंक” लाइन में हमारे लगने को ‘अंतिम’ बता ही चुके हैं…बात निकली है तो दूर तक ही जाएगी.’हंगामे’ तो हम कई बार खड़े कर चुके हैं. और ‘ग़रीबी’ हटाओ के छद्म भी देश बहुत दिनों से देख ही रहा है.
सरकारें तो आती जाती ही रहती हैं.अमरता मोदी नाम के इस फ़कीर का भी वरण नहीं करेगी.लेकिन इतिहास उनकी सकारात्मक राजनीति के लिए शुभाकांक्षाएं तो रखेगा ही.हम मोदी को ‘डाकू’ …’किलर’…’फेंकू’ …पत्नी के बहाने ‘स्त्री विरोधी’ ठहराकर भी देख चुके.थोड़ा विपक्षी सहयोग देकर भी देख लें ! ‘देवी दुर्गा’ की उपाधियाँ आख़िर विपक्ष की सहिष्णुता का ही प्रतीक था…तो एक बार फिर ‘जनता’ की बेहद मांग पर विपक्ष क्यूँ नहीं ‘एका’ दिखा सकता ?
अंत में एक बात और…
सरकारें शुरू करती हैं.जिम्मेदारी हमें ही उठानी पड़ती है.सेल्फियाँ आम के हिस्से की बातें नहीं हैं…!
हाँ ! यह सच है कि मोदी जी हर ‘शो’ मेगा होता है . ‘महा’ होता है. वह विपक्ष को लीलने वाला ‘वन मैं शो’ लगता है,होता नहीं. रही छवियों में क़ैद होने की बात तो कभी-कभी छवि की ग़ुलामी ‘दृढ़ता’ का भी प्रतीक बन जाती है. ‘सनक’ में भी पॉज़िटिव एनर्जी होती है !
और यदि यह दृढ़ता हमारे राष्ट्र की संप्रभुता के लिए शुभ हो तो इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि कोई किस प्रकार की छवि की ग़ुलामी करता है. करता भी है या नहीं ?
आमीन.
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