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माइंड की कंडीशनिंग

मेरा पक्ष...
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कालेधन को छद्म ‘ऐश्वर्य’ का दर्ज़ा दिलाने की शुरूआत तो उसी दिन हो गयी थी जब भ्रष्ट धन्नासेठों ने अपने ठीक-ठाक पुते मकानों को ‘डबल-ट्रिपल कोट’ कराना शुरू कर दिया था. इस झूठी शान ने क्रूर…अमानवीय ‘होड़’ को जन्म दिया.एक विकासशील राष्ट्र के श्रम को जाया किया. पेण्ट के रूप में कीमती संसाधनों का दुरुपयोग किया. गोबर लिपे चबूतरे का मज़ाक बनाया.
दोस्तों ! बात ज़रा बारीक है. यह ठीक है कि ‘दीवाल’ आपकी है. घर आपका है. आप शीशे जैसी फिनसिंग पाने के लिए अपने कालेधन की कमाई वाले मक़ान को ‘छत्तिस कोट’ कराने लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन याद रखे,राष्ट्र के श्रम,संसाधन को मिसयूज करने का आपको कोई राइट नहीं.
दरअसल दोष हमारी ‘राजनीति’ में है. था.
पिछली सरकारों ने हमारे माइंड की कंडीशनिंग ही ऐसी कर दी थी. ‘आज़ादी’ जैसे नैसर्गिक शब्द के माने ही बदल दिए. उसे स्वार्थ और अराजकता का पर्याय बनाकर धर दिया.तुष्टिकरण को वोट पाने का ज़रिया बना लिया. पूंजीवादी सोच का सहारा लेकर ‘भारत माता’ को ‘टू-पीस’ बिकनी पहना दी. तर्क दिया गया कि बदलते विश्व के साथ क़दम मिलाना ज़रूरी है.
यह सब ‘खुली हवा’ में साँस लेना नहीं था. यह था ‘प्रदूषण’ को घर आने का न्योता देकर अपने दरवाज़े…खिड़की खोल देना.
#नोटबंदी ने एक झटके में हमें सकते में ला दिया. यह कथित ‘फेंकू’ मोदी का मात्र जुमला नहीं प्रखर राष्ट्रवादी सोच के लोगों का सम्मिलित सर्जिकल स्ट्राइक है. इसके असीमित क्रांतिकारी सुपरिणाम होंगे. अनिल बोकिल जैसे लोगों ने मिलकर इस कडुवी लेकिन सकारात्मक असरकारक डोज़ को तैयार किया है. हमारे प्रधान सेवक मोदी जी ने तो मात्र इसे लॉन्च किया है. यह मोदी…मोदी… की हिस्टीरियाई चीखें नहीं ,सांष्कृतिक राष्ट्रवाद की शुभ शुरूआत है.
इसमें निजीपन की खाँटी देशी सुगंध तो है ही … जो जहाँ पर अच्छा है,मानव हितकारी … को शामिल करने की विनम्र एवं गद्गद पहल भी है.
आप उपरोक्त को मोदियाई ‘आरती’ कह सकते हैं. लेकिन चूँकि मैं राजनीति के ‘अंडरवियर’ का रंग बाइज़्ज़त और पूर्ण गोपनीयता के साथ आईडेंटीफाई करने में सक्षम हूँ सो कह सकता हूँ कि परिवारवादी ‘पप्पूपने’ से कहीं ज़्यादा बेहतर है… मोदी भक्त होना ! यह मेरा व्यक्तिवादी चिंतन नहीं पूरे ‘पीएमओ हाउस’ और उसकी शक्ति को रेखांकित करना है.
जय हिद ! जय भारत… !

#Ishuईशू

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