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नोटबंदी…काली क्रान्ति

मेरा पक्ष...
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#नोटबंदी
…मैं इसे
#ब्लैक रैव्’लूशन
( काली क्रान्ति )
का नाम देता हूँ…
( #नोटबंदी से जुड़ी क्रान्ति.यह क्रान्ति कालेधन के अमानवीय काल के समूल नाश के लिए चलाई गयी राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी मुहिम है… #Ishuईशू )

इस ऐतिहासिक ऑपरेशन के बाद मुझे लगता है देश दो वर्गों में बंट जाएगा.आम और बेईमान ! वर्ग संघर्ष की स्थिति भी आ सकती है.५०-५० हज़ार में सोना बेचने वाले ‘दौड़ाए’ जा सकते हैं. बस सरकार को करना इतना है वह सुकून से दो टैम की रोटी खाने की इच्छा रखते आम के पक्ष में कस के खड़ी रहे.
कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था ने एक लम्बे समय से ‘सरकार’ की भूमिका को सीमित कर दिया था.नए ‘गॉडफादर’ पैदा हो गए थे.
‘सर्किल रेट’ और ‘मार्केट प्राइज़’ में बँटी मानसिकता ने नगदीकरण को बढावा दिया. कालाधन बढा. नए साहूकार बढे. १०-१०… १५ -१५ % प्रतिमाह की दर पर शोषण वाला रुपया बाँटा गया. नौकरी की बैंक पासबुकें गिरवी रखी गयीं.जबरन ब्याज वसूला गया. कल यदि ज़रूरतमंद को बिना चक्कर लगाए बैंक आवश्यक धन उपलब्ध करा दे तो नोटबंदी एक कारगर हथियार बन सकती है.
#मोदी जी ! लोग वाक़ई ‘अच्छे दिन’ की आशा संजोए हुए हैं.सर्जिकल ऑपरेशन का सिलसिला जारी रहना चाहिए ! बात यदि शुरू हो ही गयी है तो दूर तक जानी चाहिए. मँझधार में छोड़ना हमें तोड़कर रख देगा. आज जिस गरीब ने काले अमीरों के धन को सफ़ेद बनाने में असमर्थता जताई है वह कल आपके ‘पीठ’ दिखाते ही बे मौत मारा जाएगा. नया इतिहास रचिए.और विश्वास रखिए हमें मालुम है कि यह ‘#नोट’ बदलने का नहीं अपनी ‘आदत’ बदलने का समय है.
जय हिन्द !

…अक्सर मेरे अंदर का कवि कहता रहा है –
#
मैं ढूंढ़ता रहा रात भर तेरे प्रश्न का जवाब,
मालूम था,हर सवाल का उत्तर नहीं होता !
#
आँधियाँ ही ‘काले’-धन की कुछ ऐसी चलीं
कि अहसास ‘गुलाबी’ सर्दी का जाता रहा !
#
बदहवास…साँस रूकती सी लग रही है,
हादसों…कुण्डी बजाकर आया करो !
#
दोस्तों ! देखिए मोदी जी की यह पहल कैसी-कैसी कहानियाँ समेट रही है…
1-
‘नोटबंदी में गुल्लक ‘ प्रतीक बनकर उभरी है. अब देखना है कि आर्थिक क्रान्ति के इस दौर में बचत का यह मासूम सिम्बल हमारी रचनात्मकता को किस तरह प्रभावित करता है.
2-
…उनके पास 100-50 के छोटे नोट थे.बैंक या अन्य व्यक्तिगत माध्यम से उन्होंने राष्ट्र/व्यक्ति को दे दिए ताकि मुद्रा की तरलता से जूझता राष्ट्र/व्यक्ति तात्कालिक राहत महसूस कर सके !
इसे ही कहते हैं राष्ट्रवाद !
सैल्यूट गुमनामों !!
#नोटबंदी का मामला अब सिर्फ़ ‘अर्थशास्त्र’ का विषय नहीं रहा. यह हमारे ‘समाजशात्र’ को खदबदा रहा है. नए रिश्ते बन रहे हैं. पुरानों का रिन्यूवल हो रहा है.
पत्नियों का #कुरचा ख़ज़ाना देखकर पति आश्चर्य चकित है. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा कि उसकी खूंटी पे टँगी शर्ट / पेंट से इतना राजस्व इकट्ठा किया जा सकता है ? वह दाम्पत्य के तनाव छोड़ कर परिवार के साथ अतिरिक्त लाड़ जता रहा है.
‘मालिकों’ को अपने मजदूरों के पसीने से चिढ़ थी.वह उनसे ‘कीप डिस्टेंस’ की हिदायत के साथ बात करता था.लेकिन आज वह उनसे आत्मीयता के साथ बात कर रहा है. 6-6 महीने की सेलरी एडवांस दे रहा है.
डूबा उधार बिन मांगे मिल रहा है.
जो उपभोक्ता वन टाइम सेटिलमेंट की छूट के साथ भी बड़ी मुश्किल से अपना बिजली बिल जमा करता था वह एडवांस में भी बिलों की अदायगी कर रहा है.
प्लास्टिक करेँसी प्रचलन में आने से पहले वस्तु विनमय चालू हो गया है.
“पैसे रख लो सामान लेता रहूँगा…” प्रचलन में है.
स्वभाविक मौतों को भी नोटबंदी के खाते में दर्ज़ किया जा रहा है. न जाने उन्हें कब ‘शहीद’ का दर्ज़ा मिल जाए ?
ओह ! क्या क्रांति है ?
#Ishuईशू

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