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बता के नोट बन्द करते !

मेरा पक्ष...
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कुंठित की डायरी से…
( 17-11-16 )
अपवाद और पूर्वाग्रही महानुभावों को छोड़ दें तो यह तय है कि ‘नसबंदी’ … के बाद ‘नोटबंदी’ स्वतंत्र भारत के इतिहास की युगांतरकारी घटनाओं में से एक है. नसबंदी चूँकि ‘भगवान की देन’ को चेलेंज करती थी. सो उसको अमानवीय बताते हुए उसकी ‘भ्रूणहत्या’ कर दी गयी. वोट बैंक को पोसने का सबसे गंदा उदाहरण था यह.
राष्ट्रहित के संदर्भ में क्रांति के विचार ‘हर घर,घर-घर … ‘ से पूछ कर नहीं बनाए जाते !
ख़ैर ! हठी स्वo संजय ग़ांधी का क्वालिटी/परवरिश की दृष्टि से श्रेष्ठ संतान पैदा करने का विचार पुष्पित होने से पहले ही मर गया. ढीट भारतीय धर्म की आड़ लेकर दनादन बच्चा पैदा करने में लग गए. नसबंदी का प्रश्न अनिवार्य की जगह ‘ऐच्छिक’ जो बन चुका था.
‘नोटबंदी’ देखें कब दम तोड़ती है ?
तर्क देखिए…
#इस मोदी ने लोगों को भिखारी बना दिया !
#इस मोदी ने ‘इतने’ लोगों को लाइन में लगा-लगा के मार डाला !
#इस मोदी ने वोट/ चुनाव के चक्कर में अपनी माँ को भी लाइन में लगा दिया !
#नोट ‘चूरनं’ वाला है
#बता के नोट बन्द करते !
#नोट में चिप है जो हमारी प्राइवेसी को बाधित करती है !
… अब नया आरोप –
1952 में मेरा जन्म हुआ था। इसी साल देश का पहला संसदीय लोकतांत्रिक चुनाव हुआ था।
अंग्रेज़ी राज से आज़ादी पाँच साल पहले, १९४७, १५ अगस्त को मिल चुकी थी।
लेकिन आज नवंबर, २०१६ के इस दौर के पहले कभी ‘नोट और वोट’ का इतना वितृष्णा और विकृति से भरा, सघन रिश्ता कभी नहीं देखा था।
जनता की उँगलियों में स्याही लगाना, जनता की ईमानदारी और निष्ठा का अपमान है
आप कुछ भी कहें, यह सब कुछ समाज और देश के लिए सकारात्मक नहीं है।
देश किसी व्यापारी की दुकान नहीं है , यह सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों की मातृभूमि है।
( उदय प्रकाश )
देश को –
कालेधन का चूना लगाया जा सकता है !
लेकिन –
जनता की उँगलियों में स्याही लगाना, जनता की ईमानदारी और निष्ठा का अपमान है !
वाह !
उदय सर ! कब तक ‘पीली छतरी’ तानते रहेंगे ! अब तो ‘बड़े’ बन जाइए ?
सर ! जनता की उँगलियों में स्याही लगाना, जनता की ईमानदारी और निष्ठा का अपमान नहीं है ! यह मात्र एक व्यवस्था है. जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रहित के फ़ैसलों में सेंध लगाने वालों को हतोत्साहित करना है.
“स्याही के कारण लाइन घटी”
समाचार का उपरोक्त शीर्षक हमारी पोल खोलने के लिए पर्याप्त है.
सर ! नोटबंदी के इस यज्ञ में आप अंध वामपंथी समिधा न सही कम से कम कुतर्क का गंदा पानी तो न डालिए !
– ईशू

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