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कुंठित की डायरी से…
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मज़ाक बन कर रह गया है लोकतंत्र.
सूबे का मुख्यमंत्री किसी भी IAS को सिर्फ़ इसलिए ‘नत्थी’ कर देता है ताकि उसका ईगो बना रहे. मंत्रियों की वाट लगा देता है ताकि उसकी ठसक बनी रहे.
मुगलिया सल्तनत में पारिवारिक मारकाट सत्ता की पहचान रहे हैं. लेकिन आज… ?
मज़ेदारी देखिए कि स्वार्थी समूहों का वोट पाकर नेता अपने को लोकप्रिय समझता है.भाग्य-विधाता भी !
जिसे नेतृत्व की ABC भी नहीं मालुम वह लुंगड़ों का सरदार बन कर सत्ता का शिखर चूमना चाहता है. सलामी गारद का निरीक्षण करना चाहता है !
UP में जो कुछ भी हो रहा है वह जनादेश का सामूहिक बलात्कार है !
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सपा में जो कुछ भी हो रहा है उसे ‘घर’ की बात कह कर चलता नहीं किया जा सकता.
विधान सभा के चुनाव आज भी क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति करते हैं. सपा का कमज़ोर होना क्षेत्रीय लोकतंत्र को भी क्षति पहुँचाएगा.
पार्टी बड़ी होती है और पार्टी के आगे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं माने नहीं रखती !
मेरा मानस आज भी लोहिया जी के विचारों को सैल्यूट करता है.
कितना दुर्भाग्य है,ऐसे युग पुरुष के विचारों से लैस सपा परिवारवाद,तुष्टिकरण,धनलोलुपता के चक्रव्यूह में फँसकर भाजपा/बसपा को वॉक ओवर देने जा रही है.
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