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हिंदुत्व के मुक़ाबले ईसाई मिशनरी

मेरा पक्ष...
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केन्द्र में दक्षिणपंथी सरकार है अतः संभव है कि समाचार में अतिरंजना हो ? फिर भी जरा देखिए एक बच्ची रक्षाबंधन पर लगाई मेंहदी वाले हाथों के साथ स्कूल ( सेंट मेरी,फतेहपुर ) चली जाती है. उसकी मेंहदी ईंट से खुरच-खुरच कर छुड़ाई जाती है ! बच्चा दो दिन पुरानी राखी बांधकर इसी स्कूल में चला जाता है. उसकी राखी कैंची से निर्दयता से काटकर उतरवा दी जाती है ! मुझे नहीं मालुम इस ‘अनुशाषित’ स्कूल ने कितने ‘भारत रत्न’ दिए ? लेकिन इतना तय है ‘ईसा’ आज फिर रोए होंगे,तड़पे होंगे !
मैं नास्तिक हूँ.लेकिन ईसा मसीह के सलीब उनकी ‘करुणा’ ने कब मेरे नाम प्रदीप पालीवाल के साथ ‘ईशू’ जोड़ दिया मुझे पता ही नहीं चला ! इतना ही नहीं आज से लगभग 15-20 वर्ष पहले जब मैंने राष्ट्रीय पत्र-परिकाओं के लिए व्यंग्य लिखना शुरू किया था तो मैंने अपना नाम ही “ईशू” कर लिया था. आज भी मैं ‘ईशू उवाच’ के नाम से पूरा एक ब्लॉग लिखता हूँ.
अरे सेंट मेरी फतेहपुर ! कुछ दिन बाद सही मेंहदी अंततः ‘फ़ीकी’ पड़ ही जाती ! बदरंग होकर राखियां अंततोगत्वा उतर ही जाती ! तुम्हें मध्युगीन बर्बरता
दिखाकर क्या मिला ? वो भी मासूम बाल संवेदनाओं के साथ ? संभव है क्लास में देखा-दिखाई के कारण मेंहदी / राखियाँ शोरगुल जनित अनुशाषन को भंग कर सकती थीं.लेकिन यह क्षणिक आवेग के बाद थामा भी जा सकता था ! ‘त्यौहार’ अपने घर मनाया करो…बच्ची के कोमल हाथों में ईंट रगड़ी जाती और स्कूल की प्रधानाचार्या कहती जाती ! उफ़ !
मेरा आशय बात को तूल देना नहीं.हिंदुत्व के मुक़ाबले ईसाई मिशनरी स्कूलों की निर्ममता को रेखांकित करना भी नहीं.
मेरी संवेदना बच्चों के साथ है. फिर देखिये तो –
क्या ‘मेंहदी’ की रंगत ‘ईंट’ की रगड़ से ‘सिसक’ नहीं उठी होगी ?
क्या ‘राखी’ की पवित्र भावनाएं ‘कैंची’ की धार पाकर आहत नहीं हुयी होंगी ?
आमीन !
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