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भाषण विरोध की लालू शैली…

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भाषण की राजनीति
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भाषण विरोध की लालू शैली…
( 20-08-15 )

भाषण की राजनीति का सर्वाधिक रोचक आयाम होता है उसका विपक्षियों पर पड़ने वाला प्रभाव. अब अगर यह विपक्ष चारा वाले लालू जी के रूप में हो,तो क्या कहने ?
आंकड़ों में अब बीमारू नहीं रहे बिहार को मोदी जी ने नाटकीय भाषण शैली में लक्खी पैकेज क्या दिया ? लालू जी प्रधानमंत्री जी से ज़्यादा नाटकीय हो गए.लगे भाषण की मोदी शैली की समानांतर नक़ल उतारने. अंधा क्या चाहे ? दो आँखें ! टीआरपी प्रेमी मीडिया तो जैसे ऐसे अवसरों की प्रतीक्षा ही करता है. भारतीय राजनीति में लालू जी के कथित सांप्रदायिकता विरोधी योगदान को तो रेखांकित किया ही जाएगा साथ-ही-साथ शोध इस बात का भी होना चाहिए कि यदि मीडिया लालू जी को टीआरपी बढ़ाने के एवज में ‘रॉयल्टी’ देता तो क्या उन्हें चारा घोंटने की ज़रूरत पड़ती ?
शेखर जी आज भी लालू जी की नक़ल उतार कर मिमिक्री सम्राट बने हुए हैं. वही लालू जी जब मोदी जी की भौंडी नक़ल उतारते हुए उन्हें अगंभीर बताते हैं तो सोचना पड़ता है कि गंभीर कौन ? अलग कौन ?
बिहार की चुनावी भूमि मोदी जी के लिए कोई लाल किले की प्राचीर नहीं जहां उन्हें ‘झण्डे’ की गरिमा का ख़याल रखना पड़े. भाषा की गरिमा दीक्षांत समारोहों को ही सुशोभित करती है. यदि मोदी जी का भाषण प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के अनुकूल नहीं था तो ‘बिजली मिली…पानी मिला…’ कहकर मोदी जी की नक़ल उतारते लालू जी भी कौन सा प्रधान पद के प्रति शिष्टता का शिखर चूम रहे थे !
खोखले वायदों की परंपरा,राजनीति की विदूषक शैली,लूट-बलात्कार की मानव विरोधी घटनाओं को प्रतिशत के आधार पर ‘मामूली’ सा बताने की हमारी राजनीति के मॉडल का आधार कोई मोदी जी ने नहीं रखा. ‘छल’ जब राजनीति का USP बन गया हो ! जातिगत आधार पर वोटों का गणित बनाया जाता हो. जनता को मूर्ख बनाए रखने का राजनीतिक षड्यंत्र रचा जाता हो. तो ऐसे में किसी मोदी के लिए अपनी भाषण शैली ‘आईपीएल’ की नीलामी वाले अंदाज़ में ही रखनी होती है. भ्रष्टाचार के बाज़ार में इकतरफ़ा ईमानदारी के क्या माने ?
राजनीति के स्तर में गिरावट को रोकने का जिम्मा सामूहिक है. हर योजना को ‘गांधी’ से जोड़कर इस सरनेम को ईमानदारी का पर्याय बता कर ‘लूट’ का षड्यंत्र लम्बे समय से किया जा रहा है. राष्ट्र के खज़ाने को ‘केंद्र’ के बहाने ‘हमने दिया’ की दम्भी राजनीति का हस्र आज हम केन्द्र-प्रदेश के रिश्तों की टकराहट के रूप में देख रहे हैं. ऐसे में वर्चस्व की जंग ‘अंदाज़-ए-रैली’ बनाम ‘नक़ल उतारो अभियान’ के रूप में देखने को ही मिलेगी.
आमीन !

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