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वर्तनी

मेरा पक्ष...
मेरा पक्ष...
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6-2-15
प्रेम कविता
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वर्तनी
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तुम्हें याद है…
कि तुम्हारे नाम में आता था-
‘ श ‘
और मैं लापरवाह
उच्चारित किया करता था-
‘ स ‘ !

तब ऐसा नहीं
कि मैं नहीं जानता था
फ़र्क…
‘ SH ‘ और ‘ S ‘ का !

लेकिन आज भी
यादों में
मैं ‘ श ‘ के स्थान पर
‘ स ‘ ही पुकारता हूँ…

जबकि आज
‘भाषा’ के स्तर पर
मैं हो चला हूँ
कुछ ज़्यादा ही सतर्क !
कोशिश करता हूँ
न करूँ ‘ भासा ‘ का उच्चारण !!

सच है
प्रेम के शिखर पर
‘ वर्तनी ‘ की अशुद्दियाँ
माने नहीं रखतीं…

ये भाव की दुनियाँ है –
जहाँ अक्सर
‘ श ‘ से ज़्यादा
‘ स ‘ में
मिल जाता है
‘सहद’…

बना रहे मालुम
कि ‘ सहद ‘ नहीं
‘ शहद ‘ होता है…!!!

***

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