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वर्तुल प्रेम का

मेरा पक्ष...
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वर्तुल प्रेम का
———————–

मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ
ये प्यार है !

 

मैं तुम्हें ही प्रेम करता हूँ
ये स्वार्थ है !

 

तुम मेरे प्रेम में हो,
प्रेममय हो,
मुझे तुम्हारे प्रेम में पड़ना
अच्छा भी लगता है…!

 

लेकिन तुम्ही मेरा
प्रेम नहीं हो !

 

प्रेम की प्रकृति के विस्तार में
मेरे प्रेम के दायरे में
और भी बहुत कुछ आता है !

 

जैसे…

 

छोड़ो !

 

अब ‘जैसे’ को विस्तार क्या देना ?

 

चौंको नहीं !

 

बस इतना ही
कि
जब से
मैं तुम्हारे प्रेम में पड़ा हूँ…

 

मुझे
शेष
सभी से
प्रेम करना आ गया है !

 

तो तुम मेरे प्रेम के वर्तुल को
सीमित नहीं करते,
विस्तार देते हो !!

 

***

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