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कल तुम रोईं थीं क्या ?

मेरा पक्ष...
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roeen

August 27,2013

 

कल तुम रोईं थीं क्या ?
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कठिन रही है मेरे लिए
अभिव्यक्ति प्रेम की…
हमेशा…

 

कल को ही ले लो न !

 

मैं तुम्हारा हाल-चाल
हवाओं से पूछता रहा था…!

 

प्रिय,
सच-सच बताना
कल तुम रोईं थीं क्या ?

 

नमी तो थी ही हवा में
बाल हवा के
बेतरतीब भी थे…
खिचड़ी…उलझे-उलझे से !

 

पास आयी हवा की
लट हटाकर मैंने देखा था…

 

कुछ आँसू वहाँ भी जमा थे…!

 

ख़ैर…

 

मुबारक़ हो मित्र…
रो कर तुम हल्के तो हो गए होगे…

 

मेरे लिए तो
ये भी मयस्सर नहीं…

 

मेरे आसपास
कुछ कहकहे हैं…
बनावटी…

 

इनका साथ देने के लिए
मैं रो भी तो नहीं सकता…!

 

***

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