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प्लीज़…तुम मिरे प्यार का समर्थन मूल्य बढ़ा दो !

मेरा पक्ष...
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गुलदस्ता

1

प्रेम
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कोसना…हमेशा ही नकारात्मक नहीं होता…
प्रेम के शीर्ष पर मैंने अक्सर अपशब्दों को पाया है !

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वो अक्सर लिखती रही अपना प्रेमपत्र मिरी पीठ का सहारा लेकर ,
दोस्तों ‘प्रेम’ से बढ़कर होता है प्रेम को लमहा-लमहा बढ़ते देखना !
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उसकी रुलाई में घर से ज़्यादा… प्रेम बिछोह था,
काश,आंसुओं का तुमने सही अनुवाद किया होता !
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मैं हर बार लौटता रहा…उसका छोड़ा रुमाल,
यह प्रेम के इशारे कितने अजीब होते हैं ?
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अगले जन्म में उसे उसका प्यार मिलेगा जरूर,
वो गहरी लगन से मनाती है ब्रत करवा-चौथ का !
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अब अपने प्यार को स्थगित न करता तो क्या करता ?
मिरे दोस्त, ख़ुद से ज्य़ादा मेरे घर को मिरी ज़रुरत थी !
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पल भर में पिघल गई रिश्तों में जमी बर्फ़,
बस मैंने यार के कान में ‘ कू ‘ कर दी !
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कभी दराज़…तो कभी किसी दरार में छुपाया जाता है ,
हाँ ! आज भी ख़ानाबदोस है मिरे प्यार का पहला ख़त !
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तुम कहीं भी लुटाना अपने प्यार की चाँदनी ,
हो सके तो…मुझे मेरे हिस्से की धूप देते रहना !
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प्यार है…झलकेगा…सबर रखिए…
आप बस मौसम पे…नज़र रखिए…
अहसास अनुकूल होंगे,ज़रूर होंगे…
पल-प्रतिपल की ‘नम’ ख़बर रखिए !
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हम राहे इश्क़ में ज़ख्मों की परवाह नहीं करते ,
हर चोट के साथ और भी निखरा है प्यार मिरा !
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उठा…उठा ही था दर्द – ए – इश्क, दबा देते…
प्यार के इस मुक़ाम से वापसी मुश्किल है !
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बेसब्र…बेइंतहा…इंतज़ार देखा है ,
मैंने उसकी आँखों में प्यार देखा है !
गंभीर है…छुपा लेती है मन के भावों को मगर,
थरथराते लबों को हमने…बेक़रार देखा है !
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कुछ इस तरह ओढ़ रखी है हमने संकोच की चादर,
कि टूटकर प्यार तो करता हूँ…मगर कह नहीं पाता !
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प्यार में ‘प्यार’ हो…होना भी चाहिए…इनकार नहीं मगर ,
मैं प्यार में ‘शिकायतों’ का भी पुरज़ोर समर्थन करता हूँ !
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चलो आज प्यार की नहीं…शिकायतों की पोटली खोलते हैं,
कि बहुत दिन हुए…मन के ‘ जालों ‘ को साफ़ नहीं किया है !
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मैं ख़्वाबों में ही अपने ‘इश्क’ की महफ़िल सजा लूँगा,
झूठे ही सही…तुम थोड़े-थोड़े प्यार के इशारे करते रहना !
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दोस्त पास आ…लग के सीने से जरा…सुन तो लूँ ,
कि अपने प्यार के बारे में धड़कनों की राय क्या है !
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दोस्त…दो पलों से ज़िंदगी के ख़र्चे पूरे नहीं होते,
प्लीज़…तुम मिरे प्यार का समर्थन मूल्य बढ़ा दो !
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लुटना तय था…प्यार किया मैंने ,
निजी अनुभवों का पक्षधर रहा हूँ मैं !
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