मेरा पक्ष...
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उत्तराखंड त्रासदी पर मेरे दो आँसू …
– ईशू
1
तीर्थ के बहाने वे उँगली थामकर चढ़ रहे थे दांपत्य की मंज़िलें,
क्रूर लहरों बताओ तुम्हें उनकी ‘बिछुडन’ से भला क्या मिला ?
2
कितना बदनसीब है वो बाप जो आपदा में बच तो गया लेकिन,
पीठ पीछे जो कफ़न के बदले अपने बच्चे को रजाई उढ़ा आया है !
3
कभी बचाने का शुक्रिया तो अगले ही पल डुबोने की तोहमत,
ईश्वर को पहले कभी मैंने इतना बेचैन नहीं देखा…दोस्तों !
4
सुना है फिर शुरू हो गयी है उलटी गिनती अंतरिक्ष में जाने की,
मगर बेहतर होता हम पहले केदार घाटी की लाशों को गिन लेते !
5
मैं खुलकर मौसम का मज़ा कैसे लूँ…दोस्त,
फिर से आके टकराई है कोई लाश मिरी सोच से !
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