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पत्तों को सींचते रहे ‘आधार’ सूखा रहा

मेरा पक्ष...
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June 26, 2013

पत्तों को सींचते रहे ‘आधार’ सूखा रहा
पगडंडी स्वार्थ की थामकर मैं-खा,तू-खा रहा
वोट के लिए सियासत ने बाँटी खैरातें बहुत लेकिन
मरते रहे किसान उधर बचपन भूखा रहा !

June 23, 2013
कि हिस्से मिरे दौड़ आयी ठिकाना न मिला
जब मिली उमस मिली मौसम सुहाना न मिला
बना सकूँ जिस पे , दिल से…ज़िंदगी की फ़िल्म
बहुत भटका मग़र मुक़म्मल फ़साना* न मिला !

*कहानी,उपन्यास,कल्पित साहित्यिक रचना

June 20, 2013

दर्द ये नहीं कि मैं बदनाम हुआ
टीस ये भी नहीं कि चर्चा आम हुआ
कल जब तुमने भी फेर ली निग़ाह यारा
तो लगा सचमुच सिक्का बे-दाम हुआ !

May 18, 2013

राख़ गृहस्थी हो रहीं ‘चूल्हे’ की चिंगारी से …
बिना बात के रार ठन रहीं बच्चों की महतारी से
कैसी संस्कृति ? कैसी शिक्षा ? बस मेरिट ही ऊंची है
अभिवादन से पहले होती भेंट हमारी ‘गारी’ से !

May 15, 2013

घाव कितना भी गहरा हो सह के देखिए,
बात बिगड़ी बनेगी बस कह के देखिए !
खुल गए,तो क्या?मोड़ बाकी हैं,उन्हीं पे चल के,
ज़रा नफ़ासती-क़रीने से रिश्तों को तह के देखिए !

***

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