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…तो बच्चे टूल हैं

मेरा पक्ष...
मेरा पक्ष...
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June 23, 2013
विसंगतियाँ…यूँ तो मेरे क्रोध के पारे को अक्सर सातवें आसमान पर बनाए रखती हैं…लिख-पढ़ने के अलावा कुछ ज़्यादा न कर पाने का दंश अलग से सालता रहता है ! लेकिन बच्चों का मिसयूज मुझे सर्वाधिक क्रोधित करता है ! कल कहीं पढ़ रहा था… माननीय के स्वागत में बच्चे भूखे-प्यासे मरते/बेहोश होते रहे क्यूंकि सर जी तय समय से विलंब से पहुँचे थे !
…तो बच्चे टूल हैं बेशर्म सामंती माननीयों/महामहिमों के …!
– ईशू
June 22, 2013
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…आपदाएं…राजनीति के नए अवसर प्रदान करती हैं…फ़ौज लोगों को बचाती है…लेकिन सत्ता इसका क्रेडिट लूटती है…जहाँ मौतों का आँकड़ा ‘राष्ट्रीय आपदा’ के स्वरूप को निर्धारित करता हो वहां कहने को क्या रह जाता है ? राष्ट्र की निग़ाह में हमारी क्या क़ीमत है…हम स्वयं निर्धारित कर लें !
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…न जाने किस मोक्ष की कामना से लोग दुर्गम तीर्थ यात्राएं करते हैं ? कथित मोक्ष की कामना से मौत के मुँह में जाना सीधे-सीधे आत्महत्या है !
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…कभी-कभी तो मुझे लगता है हम अभी भी अपने जनमानस में सटीक वैज्ञानिक सोच को डैवलप नहीं कर पाए हैं ! ‘धर्म’ अवैज्ञानिक है ऐसा मैं नहीं कहता…लेकिन मेरा स्पष्ट मत है कि ‘धर्म’ का कथित धर्म रक्षकों / धर्म की दुकान चलाने वालों ने ‘अपहरण’ कर रखा है ! वे कहानियों / दंत कथाओं के माध्यम से लोगों को डराकर / बहला-फुसलाकर अपना आर्थिक उल्लू सीधा करते हैं !
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…इहलोक/परलोक/मोक्ष की गूढ़ / अस्पष्ट परिभाषाओं से दूर एक छोटा-सा बच्चा अपनी माँ की उँगली से छिटक कर प्रलय रूपी बाढ़ में बह जाता है…यदि आपको लगता है यही तय था / नियति थी / प्रभु इच्छा थी…तो मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी ! हाँ ! इस मासूम की मौत के लिए आप स्वयं को / समाज को / धर्म को / सत्ता को दोषी मानते हैं तो मैं आपके साथ सहानुभूति रखते हुए आपको आमंत्रण देते हैं कि आइए हम आप मिलकर धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझें और प्रकृति और अपने रिश्ते को सचमुच नेचुरली परिभाषित करें…क्यूंकि बच्चा/बच्चे/लोग मर चुके हैं लेकिन सुन सकें तो इन लोगों की चीख फ़िज़ाओं में अभी भी गूँज रही है !
– ईशू
June 20, 2013
जब तक आकस्मिक मौत को नियति / पूर्व जन्मों में किए कथित पापों का प्रतिफल माना जाता रहेगा…आप प्राकृतिक आपदा आदि के कारणों की वस्तुनिष्ठ खोज़-ख़बर नहीं कर सकते…रही बात सत्ताओं की तो वे मुआवज़ा बाँटकर अपने गुनाहों पर पर्दा डालती रहती हैं ! ‘दर्द’ का हवाई सर्वेक्षण इतना ही रिज़ल्ट दे सकता है !
– ईशू
लोकतंत्र में सामंती शैली का सर्वाधिक निर्लज्ज उदाहरण है…प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों का ‘सत्ता’ द्वारा कथित हवाई सर्वे में अवलोकन करना ! लोग मर रहे हैं…आप उड़न खटोले पर सवार हैं !
– ईशू
June 19, 2013
स्वार्थ का इंजेक्शन लगाकर हम प्रकृति का दोहन करते रहे…आपदाओं की मार हम ही झेलेंगे !
– ईशू
संसदीय लोकतंत्र में आप किसी युवा के हाथों देश / प्रदेश की बागडोर सौंपकर निश्चिंत नहीं हो सकते ! किसी 60-70 साला को इस युवा नेतृत्व की सुपर निगरानी के लिए नियुक्त करना ही होगा ! यह ठीक है कि युवा होते देश की लगाम युवा जोश के हाथ में हो लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं…देश चलाने के लिए परिपक्व राजनीतिक कमीनेपन की ज़रूरत भी होती है…और यह खांटी कमीनापन किसी उम्रदराज़ राजनीतिज्ञ में ही संभव है !
– ईशू

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