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सुविधाओं का बंदरबांट …

मेरा पक्ष...
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May 26, 2013
सत्ताओं जरा बताना आपने किस नक्सली के भ…ल…भ…ल बहते ख़ूनी जिस्म को एयर एम्बुलेंस से भेजकर उसका ‘मेदान्ती’ इलाज़ करवाया ?
सुविधाओं का बंदरबांट … ख़ून …ख़ून में फ़र्क करना बंद करो सत्ताओं वरना नाहक तो ख़ून बहेगा ही !
– ईशू
बेशर्म सत्ताओं से पूछो…करोड़ों की गाड़ियों पर लदकर,ग़रीबी का लगभग उपहास उड़ाते हुए जब आप अपनी कथित ‘परिवर्तन यात्रा’ साक्षात नरक में घिसटते लोगों की ‘बू’ से बिजबिजाती गलियों / यथास्थिति के प्रतीक ‘जंगल’ से होकर गुजारेंगे तो आप का स्वागत फूलमालाओं से होगा या फिर विरोध की प्रतीक बारूदी सुरंगों से !
गरेबां में झांको सत्ताओं …किसी ज़र ख़रीद गुलाम की लिखी पटकथा के माध्यम से टीवी पर कथित “हक़” की भ्रामक नुमाइश से बेहतर है सचमुच उनके लिए कुछ करो जो अब नक्सली बन कर ‘सत्ता’ के ख़ून के प्यासे बन चुके हैं !
– ईशू
सत्ता जब अपने कारिंदों के हाथों ‘नक्सली’ का ‘कत्ल’ करती है तो लिखा जाता है … “नक्सली मारा गया…” नक्सली जब सत्ता और उनके कारिंदों का क़त्ल करती है तो लिखा जाता है …” ….शहीद हुए !” भाषा का यही फ़र्क इस समस्या की जड़ है !
– ईशू

मृत्यु किसी की भी कष्ट देती है ! बर्बर मृत्यु / हत्या तो और भी ज़्यादा ! सामान्य अर्थों में ‘नक्सली’ शब्द को सत्ता / लोकतंत्र
विरोधी मान लिया जाता है ! बस चूक यहीं पर है ! सोचिए 1000-1200 लोगों का एक दल जब हिंसक वारदात को अंजाम देता है तो इसे नक्सली हिंसा माना जाए या फिर ‘जन विद्रोह’ ?
– ईशू

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