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मेरे इश्क की राइटिंग सुधार लीजिए !

मेरा पक्ष...
मेरा पक्ष...
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May 18, 2013

1

राख़ गृहस्थी हो रहीं ‘चूल्हे’ की चिंगारी से …
बिना बात के रार ठन रहीं बच्चों की महतारी से
कैसी संस्कृति ? कैसी शिक्षा ? बस मेरिट ही ऊंची है
अभिवादन से पहले होती भेंट हमारी ‘गारी’ से !

May 15, 2013

2

घाव कितना भी गहरा हो सह के देखिए,
बात बिगड़ी बनेगी बस कह के देखिए !
खुल गए,तो क्या?मोड़ बाकी हैं,उन्हीं पे चल के,
ज़रा नफ़ासती-क़रीने से रिश्तों को तह के देखिए !

3

कम,ज़्यादा सही…सताते रहना ,
दुश्मन हो…दुश्मनी निभाते रहना !
हम ठहरे प्रबल विपक्ष के पक्षधर ,
जब भी कमज़ोर पड़ो,बताते रहना !

4

प्यार है…झलकेगा…सबर रखिए…
आप बस मौसम पे…नज़र रखिए…
अहसास अनुकूल होंगे,ज़रूर होंगे…
पल-प्रतिपल की ‘नम’ ख़बर रखिए !

5

आम आदमी के ख़िलाफ़ चल रही हवाएं देखिए,
चंद “आरोपों” से घबरा गयीं “सत्ताएं” देखिए !
जो “मंच” से भरते थे ऊँचे “उसूलों” के दावे ,
अब उन्हीं के हाथों लुटती “वफाएं” देखिए !

6

ग़म है,बना रहे…सहूँगा
बुरा लगे,लगता रहे…कहूँगा
मैं तो दीवाना हूँ…मेरा क्या ?
राह पथरीली सही…गहूँगा !

7

चौपाल पे घर की बातें बताना ठीक नहीं,
पर्दे हया के…सरे राह उठाना ठीक नहीं !
ग़लत फ़हमी है…पास बैठो… दूर कर लें ,
यूँ इस तरह इलज़ाम लगाना ठीक नहीं !!

8

शक़ की गाँठों को घुलने में समय लगता है…
रिश्ते बिगड़ जाएं तो बनने में समय लगता है !
‘दवा’ के तो हैं ही समय के भी अपने इलाज होते हैं,
‘घाव’ धोखे के हों तो भरने में समय लगता है !

May 4, 2013

9

यूँ कनखियों से देखना…जुर्म है
चुंबन हवा में फेकना…जुर्म है
पहरे हैं,बने रहें…सीधे-सीधे बात करो
जंग-ए-इश्क में घुटने टेकना…जुर्म है !

10

उदासी है…हटा दो इसे
नफ़रत है…घटा दो इसे

11

ग़म है,बना रहे…सहूँगा
बुरा लगे,लगता रहे…कहूँगा
मैं तो दीवाना हूँ…मेरा क्या ?
राह पथरीली सही…गहूँगा !

12

आम आदमी के ख़िलाफ़ चल रही हवाएं देखिए,
चंद “आरोपों” से घबरा गयीं “सत्ताएं” देखिए !
जो “मंच” से भरते थे ऊँचे “उसूलों” के दावे ,
अब उन्हीं के हाथों लुटती “वफाएं” देखिए !

आँखें
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13

चेहरे पे रुआब-सी…आपकी आँखें
अधूरे ख़्वाब-सी…आपकी आँखें
कल चोरी से झाँका तो समंदर मिला
दर्दीले शबाब-सी…आपकी आँखें !

14

बेतरतीब फैला हूँ…बुहार लीजिए
बहुत हुआ अब तो…पुकार लीजिए
भागम-भाग में,रफ़-सा लिखता रहा हूँ
मेरे इश्क की राइटिंग सुधार लीजिए !

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