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May 9, 2013
ईशू उवाच / राजनीति क्षेत्रे
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चुनाव ‘टर्न-रिटर्न’ का बहुमती खेल है.बस आप डटे रहिए…विश्वास मानिए आज जिस पार्टी को अगले पाँच साल तक राज करने
का ‘टर्न’ सौंपा गया है…कल जनता को विश्वास में लेकर आप भी ‘रिटर्न’ कर सकते हैं. न किराए पर ‘ढोल’ पीटने वाले कहीं जा रहे और न ही बूंदी के लड्डू ही समाप्त होने जा रहे हैं !
– ईशू
स्त्री चरित्रं …पुरुषस्य भाग्यम और अब ‘जनतस्य रुखम’…देवो न जनाति …कुतो पार्टीयः ?
– ईशू
यदि आप ‘मैनेज’ करें तो चुनाव के दौरान लगी हल्की सी भी चोट आपको भारी ‘वोटों’ से जितवा सकती है ! ‘वोट’ की द्रष्टि से ‘चोट’ की अपनी अलग और निर्णायक सहानुभूति-जनक ‘लहर’ होती है !
– ईशू
यदि आप आज के लोकतंत्र से ‘पक’ चुके हों तो आप के पास नकारात्मक रूप से यह सोचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं कि …चुनाव में ‘जीत’ गिरोहबंद लोगों द्वारा सुनियोजित तरीक़े से डाली गयी वोट-लूटवा ‘डकैती’ है !
– ईशू
राजनीति क्षेत्रे जो ‘कुर्बानियाँ’ ली / दी जाती हैं वह कथित रूप से पार्टी की छवि बचाने का प्रयास कहलाती हैं.लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि कुर्बानी की इस प्रक्रिया में जिन ‘सिरों’ को मूंडा जाता है दरअसल उन्हें उस पद पर पार्टी की छवि के अनुरूप ही आरूढ़ किया जाता है !
– ईशू
कहते हैं ‘जनता’ की अदालत सबसे बड़ी होती है.माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाले पर जैसे ही वर्तमान सरकार की कड़ी फटकार लगाई …सरकार के पालतू कारिंदों को तुरंत ही ‘कर्नाटक’ की प्रचंड जीत के रिपोर्ट कार्ड को दिखाते हुए उसे अपने असंसदीय शब्द वापस लेने को बाध्य कर देना चाहिए !
– ईशू
राष्ट्र के संदर्भ में ‘एकता’ अच्छी सोच हो सकती है लेकिन चुनावों में जातियों की ‘एकता’ ने लोकतंत्र के ‘जन-सापेक्ष’ स्वरूप को तहस-नहस कर दिया है !
– ईशू
राजनीति में ‘भय’ …वोटों का ध्रुवीकरण करता है.ध्रुवीकरण से आप ‘जीत’ तो जाते हैं लेकिन ‘वर्गभेद’ की दरार डालकर. और यही दरार लोकतंत्र की ‘हार’ बन जाती है !
– ईशू
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