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ताकि सनद रहे…!

मेरा पक्ष...
मेरा पक्ष...
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ताकि सनद रहे…!
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लाल मांस,
ढुढार मुर्ग,
खुशका चावल,
मक्की शहजादी,
मलाई कोफ़्ता,
दाल बंजारी,
कैर-सांगरी,
टमाटर-धनिए का शोरबा,
ज़ाफ़रानी रस-मलाई,
रबड़ी-मालपुआ,
मलाई-कुल्फ़ी,
मिस्सी-रोटी,
तंदूरी-चपाती

और…
नान का लुत्फ़ उठाया
बेशर्म सत्ताओं ने !
चबा-चबाकर…मुरा-मुराकर…चाट-चूटकर…!!

दोस्तों !
सुना है
दौराने लंच
लगे थे ठहाके…
निर्लज्ज…क्रूर…अमानवीय !

और ध्यान रहे
इस ‘चीयर्स’ में
‘उनका’
‘हमने’ भी साथ दिया था…!!

वैसे कमाल की बात है
कि बेशर्म सत्ताएं
कितनी आसानी से
एक साथ पचा जाती हैं…
मिस्सी-रोटी के साथ-साथ
सैनिक का काटा सिर भी…!!

शायद
निर्मम सत्ताओं ने
मज़बूत कर लिया है
अपना पाचन तंत्र…
बना ली है
आम जनता के दुःखों से दूरी…!

उफ़ !
तभी तो ये बड़े आदमी
बड़े आराम से
निजी धार्मिक यात्रा के बहाने
साधते रहते हैं अपने
राजनीतिक…आर्थिक मनोकांक्षाओं के शैतानी लक्ष्य !

काश !
मुझ जैसे
कुत्ते कवि…
( बेशर्म सत्ताओं द्वारा दी जाने वाली ‘हमारी’ प्रिय पदवी )
के पास
अपनी कुंठा के साथ-साथ
होती…
थोड़ी-सी मीडियाई ताक़त
तो दिखाता…

एक तरफ
हुक्मरानों के
जाम-टकराते विजुअल
और ठीक इसी वक्त
सिर कटे भारतीय जवान
के परिवार पर बीतती वेदना…!!

यह ठीक है कि
मैं भी
दुश्मनी को पालने में यक़ीन नहीं रखता
लेकिन,
दूसरे गाल पर भी
थप्पड़ खाने…
अबकी फिर मारकर देखो…मुहावरे में
आस्तीन के साँप पालने में…
मेरा कोई विश्वास नहीं…!!

राजनीति की कथित कूटनीति से दूर
खाँटी कवि तेवरों के साथ
आम जनता के पक्ष में
मैं तब तक
आग़ उगलता रहूंगा
जब तक,
हमारी पीड़ा
पसीना बनकर
सत्ताओं के माथे पर
न चुहचुहा जाए…!

मैं जानता हूँ –
आज की निरंकुश सत्ताएं
गैंडे की खाल लिए
उतारते हुए पूंजी की आरती…
पढ़ते हुए बाहुबलियों की शान में कसीदे…

किसी से नहीं डरतीं…

‘कविताओं’ की तो ख़ैर औक़ात ही क्या !

लेकिन,
मेरे लिए संतोष की बात यही है –

कि जब…

चढ़ते ‘सूरज’ को दिया जा रहा था अर्घ,
प्रशासन जुटा था शासन की राह में बिछाने को ‘रेड कार्पेट’
हत्याओं को ढँका जा रहा था ‘शहादत’ के कफ़न में,
लोग जुटे थे 2014 के चुनाव को जीतने की जुगत में
वोट बैंक के लालच में दिया जा रहा था…
सांम्प्रदायिकता को प्रश्रय,
गढी जा रही थीं शिष्टाचार की…
इक तरफ़ा
नपुंसक परिभाषाएं…

तो ऐसे समय में…

एक सैनिक के सिर काटे जाने की
बर्बर घटना को याद करते हुए

हमने दर्ज़ करवाया

सांकेतिक
शाब्दिक…प्रतिरोध

ताकि सनद रहे…!

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