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आह…कुश्ती !!

मेरा पक्ष...
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आह…कुश्ती !!
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2020 के ओलम्पिक खेलों से हट सकती है कुश्ती !
इसमें आश्चर्य क्या ?
आर्थिक मंसूबों को विस्तार देने का माध्यम बन चुके हैं खेल ! होगी निशानेबाज़ी ओलम्पिक खेलों का एक हिस्सा …सच तो ये है ‘खेलों’ के भावनात्मक काँधे पर धर कर लगाये जाते हैं ‘तिज़ोरी भराऊ’ निशाने !
… …और बनाए जाते हैं …आर्थिक उपनिवेश !
पैशाचिक अट्हास करता ‘बाज़ार’ एक-एक कर जीवन के ज़मीनी मूल्यों को निगलता जा रहा है.’कलमाड़ी’ जैसे पुरोधा उसके लिए ‘रेड कार्पेट’ बिछाने के लिए उपलब्ध हैं ही !
अरे ! आती होगी आप-हमको अब भी ‘गद्दों’ के बावज़ूद कुश्ती से ‘मिट्टी’ की भीनी…ख़ुशबू ! और हम अब भी समझते होंगे ‘कुश्ती’ को परंपरा,प्रकृति और व्यक्तिगत शौर्य का संगम ! बाज़ार के लिए तो ‘कुश्ती’ जैसे खेल अब लोकप्रिय टीवी रेटिंग,टिकट बिक्री और डोपिंग की कसौटी मात्र हैं !
ओलम्पिक पदक विजेता पहलवान ‘सुशील कुमार’को उपरोक्त फ़ैसले से झटका लगे तो लगता रहे.’बाज़ार’ भावनाओं की क़दर नहीं करता.हाँ ! आवश्यकता पड़ने पर वह भावनाओं का दोहन ज़रूर करता है ! उसकी स्वार्थी निग़ाह में वही ‘खरा’ है जो उसकी ‘अगवानी’ करे ! वरना भाड़ में जाए आपके पहलवान और उनकी पहलवानी !

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