Menu
blogid : 12968 postid : 119

“ख़ुदकुशी”

मेरा पक्ष...
मेरा पक्ष...
  • 152 Posts
  • 100 Comments

डायरी…5

“ख़ुदकुशी”
=========
मेरे सामने 14 जनवरी ’13 के ‘दैनिक जागरण’ का 18वां पृष्ठ खुला है,ख़बर छोटी है:
…वेब फीड सिस्टम आरएसएस ( रिच साइट समरी ) बनाकर 26 वर्ष की उम्र में ही मशहूर हुए “ऐरोन स्वार्ज” ने ख़ुदकुशी कर ली है !
ख़बर न्यूयार्क से है.
ख़बरें जोड़ती हैं…तोड़ती भी हैं ! संवेदना का आवेग ‘दूरियों’ के फ़लसफ़े को कहाँ मानता ? यदि मामला किसी की मृत्यु से जुड़ा हो तब तो कतई नहीं…!
मैं ‘स्वार्ज’ को नहीं जानता.आरएसएस बोले तो ‘कंप्यूटर’ के मामले में भी लगभग ‘0’ हूँ.लेकिन मैं दुःखी हूँ क्यूंकि मैंने ‘ख़ुदकुशी’ को नज़दीक से देखा है, महसूसा है…!
संभव है ‘अमेरिकी’ समाज में ‘आरएसएस’ सिस्टम बनाना कोई बड़ी योग्यता की निशानी न हो लेकिन मैं ‘स्वार्ज’ के जाने को ‘संभावनाओं’ की मौत भी मानता हूँ !
‘स्वार्ज’ अब…कम-से-कम सूचना के आधार पर ग्लोबल होती इस दुनिया में नहीं है. कल उसकी मौत ‘ख़बर’ भी नहीं रहेगी लेकिन हमें मथने के लिए प्रश्न तो बने ही रहेंगे :
@ क्यूँ करते हैं लोग ख़ुदकुशी…आत्महत्या ?
@ ‘स्वार्ज’ जो कंप्यूटर विशेषज्ञ था ने जीने की जगह ‘पंखे’ से लटक जाना क्यूँ बेहतर समझा ?
@ क्या स्वार्ज…स्वार्ज जैसों की मौत हमारी कथित ग्लोबल ‘शिक्षा’ व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाती ?

…मैं जानता हूँ कि उपरोक्त प्रश्नों से मानसिक स्तर पर जूझने वाला मैं अकेला नहीं हूँ. फिर भी क्या मौत के तरीक़े के आधार पर अगला ‘स्वार्ज’ न बनने देने में हमारा यह वैश्विक समाज सक्रिय सहयोग देगा ?
मेरा मानना है,मूल रूप से हम ‘जीने’ वाले प्राणी हैं. यदि हम स्वयं उम्र की किसी भी अवस्था में मौत का चुनाव करते हैं तो इसकी सामाजिक वजहें भी होंगी!
हाँ ! आत्महत्या कायरता है. लेकिन इसका चुनाव भी अपरिहार्य परिस्थितियों की देन है !

…बात स्वार्ज की है…लेकिन स्वार्ज की ही नहीं है ! आत्महत्या से व्यक्ति ही नहीं समाज का ‘मान’ भी मरता है !

कौन जाने ख़ुदकुशी को अपनाने से पूर्व ‘स्वार्ज’ के मन में इस दुनिया को नया ‘देने’ का कौन सा स्वप्न पल रहा था ?

…और ‘स्वप्नों’ का टूटना मुझे बहुत तोड़ता है !
अब वो किसी की भी आँखों में क्यूँ न पल रहे हों !

आमीन !!

***

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply