मेरा पक्ष...
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उँगलियों का स्वाद …!
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ओ दुनिया के सभ्य लोगों
माफ़ करना…
कल जीभ के निवेदन पर
मैंने
चम्मच को दरकिनार कर
सपोटामार अंदाज़ में
खाई खिचड़ी…
चाटी उँगलियाँ…!
यदि
स्वस्थ और साफ़ हों हाथ
तो पारंपरिक व्यंजन के साथ
लिया जा सकता है
उँगलियों का स्वाद भी…!
‘चम्मच’
सभ्यता की निशानी है
और यह भी कि
सभ्यता का सीधा आशय
स्वास्थ्य से है…
लेकिन दोस्तों…
कभी-कभी
मन की तसल्ली के लिए
न केवल
चाटी जा सकती हैं उँगलियाँ
बल्कि
‘चुल्लू-से’
पानी भी पिया जा सकता है…!
यदि देह का
देह के ही अंगों से स्पर्श
‘अपनापन’ लाए
तो
सभ्यता की वर्तमान परिभाषा के अनुसार
थोड़ा
अशिष्ट हुआ जा सकता है…!
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