मेरा पक्ष...
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विडंबना
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जब ‘अर्थ’ के हाथ में
दे रखी है हमने
अपनी ज़िंदगी की लगाम…
तो विडंबनाएं
सर चढ़कर बोलेंगी ही…!
शीला की जवानी में
पनाह लेता देश
अब चरित्र की चिंता नहीं करता…
उसकी पेशानी पर
चरित्र के नहीं
रूपये के गिरने से
गहरा जाती हैं
चिंता की लकीरें…!
चियर…!
चियर्स…!!
चियर लीडर…!!!
की चुस्की
विडंबनाओं को रेखाँकित करने पर
चिढ़न-सी महसूस करती है…!
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