मेरा पक्ष...
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प्यार में…
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“…आई लव यू ! ”
तुमने कहा.
…और बिना प्रत्युत्तर पाए
करने लगे इंतज़ार
उसके चेहरे पे खिलती मुस्कराहट का,
साथ ही उस फ़िल्मी डायलॉग का
जिसका उद्देश्य…
अपवाद को छोड़कर
हमेशा ही रहा है
तिज़ोरी भरना…!
पर्दे पे चल सकती है
ज़िन्दगी में नहीं चलती फ़िल्मी नाटकीयता…
सो थोड़ा इंतज़ार करो मित्र !
सोचने तो दो लड़की को…!
प्यार के निर्णय
आनन-फ़ानन में नहीं लिए जाते…
स्थाई भी तो नहीं होते ऐसे रिश्ते !
चाहेगी लड़की
तो ज़रूर कहेगी…
“…मैं भी आपको प्यार…! “
शहर को मारो गोली…
गाँव तक में,
ठुकराए जाने लगे हैं दुल्हे…
बेहतर होगा मित्र
आप भी डाल लें आदत
‘न’ सुनने की…!
चाहना प्यार में…
कभी भी इकतरफ़ा नहीं होता मित्र…
बाद ‘नाते’ के खिंची रहें दीवारें,
तो क्या फ़ायदा ?
इससे तो बेहतर होगा,
ताली दोनों ही हाथों से बजे…!
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