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शेर…

मेरा पक्ष...
मेरा पक्ष...
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शेर…
1
मंज़िल ख़ुद आगे आकर तिरा इस्तक़बाल करेगी बशर्ते ,
तुम चलकर गिरना…गिरकर उठना सीख लो दोस्त !

2
क्यूँ कर रहे हो ये दान का दिखावा मिरे दोस्त?पुण्य ही चाहिए न…
तो,बस आप अपने व्यापारिक लाभ का प्रतिशत नियंत्रित कर लें !

3
मैं खुलकर नहीं हँस पाता तो क्या ? गर चाहो…
मेरे घायल होठों से ले लो मिरी ख़ुशी की गवाही !

4
ये लूट,घोटाले,भ्रष्टाचार और ये बेशर्मी का आलम…
चलो इलज़ाम लगाने से पहले अपने गरेबां में झाँक लें !

5
भ्रम का शिकार बन गुस्ताख़ियाँ करता रहा ,
अगले को मूर्ख बना ख़ुद सच से मुक़रता रहा !

6
मुश्किलें आती हैं जाती हैं मगर बेफ़िक्र रहो,
जो मन से दौड़ेगा वही अव्वल निकलता है !

7
दोस्त,मैं तो ख़ामोश ‘लोकतंत्र’ हूँ और मिरा एक ही मतलब है,
‘जीतकर’ तुम चाहो तो मिरी कर सकते हो मनमानी व्याख्या !

8
नहीं माने ? कमा ली आपने भी ‘झूठ’ बोलकर अकूत दौलत,
मेरे भाई,अब ग़ौर से देखना ये किस तरह बरबाद होती है !

9
मिरे भाई…अब ख़ाम-खाह वक़्त ज़ाया किया न आपने तजुर्बा लेने में ?
‘ये रस्ता किधर जाता है ?’ किसी अनुभवी बुज़ुर्ग से पूछ लिया होता !

10
यूँ तो सब ‘माध्यम’ हैं…कोई किसी पर अहसां नहीं करता दोस्त,
गर अहसां है…तो मैं लूँगा कि इससे मिरा ‘अहं’ चला जाता है !

11
चाँद से बातें कर लीं,समुद्र में डूबे खज़ाने भी ढूंढ़ लाया इंसा मगर ,
जिसको देखो वही अपने ‘दर्द’ को न समझ पाने की शिकायत करता है !

***

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