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ादसे
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ूँ ही नहीं होते हादसे
इनकी पटकथाएँ
लिखी जाती हैं…
संसद के दोनों सदनों में…
“…चौकीदार रहित लेवल क्रासिंग
निगल गयी १५ ज़िंदगियाँ…”
जाओ और जाकर चिपका दो
इस समाचार शीर्षक को
उन माथों पर
जो ज़िम्मेदार हैं
इसके लिए…
बेशक !
इसकी एक प्रतिलिपि
मेरे माथे पर भी
चिपका देना…
अप्रत्यक्ष रूप से मैं भी तो
ज़िम्मेदार हूँ…
इस दुर्घटना के लिए…!
जिस समय कोई “त्रिवेदी”
रेल बज़ट पेश करते समय
चिल्ला रहा था…
सुरक्षा…सुरक्षा…सुरक्षा
उस समय हम मशगूल थे
भ्रष्ट राजनीति करने में…
साथ ही कुछ कार्टून आदि बनाने में
ताकि हमारा मनोरंजन हो सके…!
“…सिस्टम को राजनीति से ऊपर होना चाहिए .
मैं किसी की नौकरी नहीं करता,राजनीति करता हूँ.
बढ़े किराये की वज़ह से हटाया,तो प्रणव को भी हटाएं.”
कोई बताने की ज़रूरत नहीं है कि
ये किस का वक्तव्य है…
यूँ तो ये हिंदी में ही लिखा है…
फिर भी
यह बिल्कुल ठीक समय है…
इसके पूर्वाग्रह रहित अनुवाद को
‘दूर’ तक पहुँचाने की…!
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