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शेर…
1
मित्र ! कुछ नहीं तो अपने ही हँसी के कुछ किस्से उधार दे दो,
अब मिरे हाथ में तो आते ही अक्षर बदल लेते हैं अपनी तासीर !
2
वाह ! काँधा मिरा…और शिकार मेरा ही ,
यार शराफ़त का कुछ तो ख़याल रखो !
3
“कहाँ रहते हैं आप” ये पूछकर…तुमने दिल तोड़ दिया,
यार हम तो समझे थे तिरे दिल में जगह मिल गयी होगी !
4
मिरे दोस्त…अब तो बदल दो अपनी आलोचना का मीटर ,
संदर्भ बदल गए हैं कि बहुत बह चुका है पानी दरिया में !
5
तो आओ यारा…कुछ पल और शैतानियाँ कर लें ,
कल तो ‘खाप’ की आचार संहिता लागू होनी ही है !
6
होंठ सिल गए थे… मिरे शेर पर वाह नहीं निकली ,
दोस्त,गर शब्दों में हो तासीर…तो कुछ भी संभव है !
7
चलो तुम्हीं पढ़ लो आँखों को…कर लो मौन का अनुवाद ,
दोस्तों…वो ख़ुद्दार है, मर जायेगा…नहीं कहेगा दे दो रोटी !
8
तब हालात ने छीन ली थी सुबूत ख़रीदने की कूवत वरना,
दोस्तों,मैं ग़लत इल्ज़ाम में अब इस तरह तनहाई न काटता !
9
जो सच सुनकर दिखाई होती तुमने दरियादिली ,
दोस्त…वो शख्स मुसलसल झूठ क़तई न बोलता !
10
दोस्त…मिरे शब्दों से जीत ली तुमने अपने मोहब्बत की जंग,
अब चलो हमारे जज़बात की चूनर कहीं तो ओढ़ी गयी !
11
हरण सीताओं का अब भी जारी है मिरे मित्र,
पुतला रावण का हर साल फूंकना फ़िज़ूल गया !
12
मान रखता हूँ दोस्तों परम्पराओं का लेकिन,
अपनी मौलिकता का सदा ख्याल रखा है !
13
उसकी रुलाई में घर से ज़्यादा… प्रेम बिछोह था,
काश,आंसुओं का तुमने सही अनुवाद किया होता !
14
मैंने ‘इंसान’ कहा तो सब चौंक उठे,
प्रश्न था-आप बच्चे को क्या बनायेंगे !
15
तुम जब भी लिखना…लिखना पूरे होशोहवास में ,
दोस्त, शब्द धीरे-धीरे पूरे वजूद को जकड़ लेते हैं !
16
मुझे हर चीज़ की नश्वरता का अहसास है लेकिन दोस्तों ,
मैं इस बार भी दिवाली की सफ़ाई में ‘गुट्टे’ फैंक न सका !
17
तुमने ‘पागल’ बताने में जरा जल्दी कर दी,
वो तो ‘बच्चे’ की ख़ुशी के लिए बना था घोड़ा !
18
गहरा बंधा है तेरे मुक़द्दर से मेरा मुक़द्दर,
तुझे तेरे मुक़द्दर के हवाले कैसे छोड़ दूँ ?
19
मुझे तो जाना ही था ‘चौराहे’ तक… उसका काम भी निबटा आया,
जाया कर रहे हैं लोग अपना समय…बात का बतंगड़ बनाकर !
20
वो हँसे तो लगा हँसी ज़िंदा है , वरना
एक मुद्दत से खुली हँसी नहीं देखी !
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